Friday, January 18, 2019

हिंदी कविता: द्रोपदी का वस्त्र हरण


डर मत, घबरा मत 
कर विवस्त्र द्रोपदी को 
नचा उसको छमाछम 
भरे दरबार में आज . 

नाचेगी राजपथ पर 
कुलवधू आज 
वासनामयी नजरे 
बरसाएंगी सुवर्ण, 
द्रोपदी के नग्न तनु पर.

अनायस ही भर जायेगा
राजकोष भी आज.

डर मत, घबरा मत .......धृ.
जम गया है खून 
भीम  का आज
बाण अर्जुन के भी 
कुंद हो गए हैं आज
जुए को ही धर्म
मानता धर्मराज है आज.

डर मत, घबरा मत .......धृ

नहीं है आज कोई 
कृष्ण सुदर्शनधारी
डाल-डाल पर है बसेरा 
मांस नोचते गिद्धोंका
 धर्म न्याय के ज्ञाता 
भीष्म भी है सहमत
नाचेगी कुलवधू 
भरे दरबार में आज.

डर मत, घबरा मत .......धृ


चारण भाट गायेंगे 
नग्न तनु के गीत आज 
देह की गंध में डूबेगा 
अंधा धृतराष्ट्र आज.

डर मत, घबरा मत .......धृ










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