विवेक पटाईत / कविता, ललित लेख इत्यादी
Marathi stories, kavita
Wednesday, January 29, 2014
द्विभाषिक क्षणिका/ चश्मा /उम्मीद
(
१
)
चश्मा
डोळे झाले माझे अधू
दिखती नहीं है
दिल्ली.
मिळेल कुठे तो जादूचा चश्मा
दिखाए मुझे जो लालकिला
.
(
२
)
उम्मीद
झाले शरीर जरी म्हातारे
दिल अभी जवान है
.
वरेल का मला ती षोडसी
उम्मीद अभी कायम है
.
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